कटनी जंक्शन -- आज सुबह शहर कांग्रेस के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष राजा जगवानी ने जिले को सरकारी मेडिकल कालेज की जगह पीपीपी माडल पर आधारित मेडिकल कालेज मिलने पर कहा कि, जिले की वर्षों पुरानी मांग थी सरकारी मेडिकल कॉलेज। जनता ने उम्मीद की थी कि जैसे जबलपुर, सागर, शहडोल और रीवा को सरकारी मेडिकल कॉलेज मिले हैं, वैसे ही कटनी को भी मिलेगा। लेकिन हुआ क्या? सत्ता ने जनता की चाहत को किनारे कर पीपीपी मॉडल थमा दिया—यानि आधा-अधूरा कॉलेज, जो नाम तो मेडिकल कॉलेज का है, लेकिन असल में निजी हाथों का कारोबार।
सोमवार को जबलपुर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। बीजेपी नेताओं ने इसे कटनी के लिए ऐतिहासिक बताया, ढोल-ढमाके किए, तस्वीरें खिंचवाईं और राजनीतिक क्रेडिट लेने की होड़ मचाई। लेकिन सच्चाई यह है कि जनता इसे उत्सव की तरह नहीं, बल्कि एक छलावे की तरह देख रही है।
लोग पूछ रहे हैं—कटनी के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? क्या कटनी के नागरिक दूसरे दर्जे के हैं, जिन्हें सरकारी नहीं, निजी मॉडल से ही समझौता करना पड़ेगा? पीपीपी मोड पर बनने वाला कॉलेज भले ही चमक-दमक दिखाए, लेकिन इलाज और पढ़ाई दोनों ही महंगे होंगे। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए यह सपना उनकी जेब से बाहर का साबित होगा।
बीजेपी और उसके स्थानीय नेता इस फैसले की आलोचना से बच नहीं सकते। उन्होंने जनता की असली मांग को दबा दिया और केवल राजनीतिक तामझाम पर जोर दिया। यही कारण है कि जश्न मनाने की बजाय लोगों के बीच नाराजगी और अविश्वास बढ़ा है।
कटनी को मेडिकल कॉलेज मिला, यह सही है—पर सवाल यह भी उतना ही सही है कि क्या यह कॉलेज जनता का होगा, या निवेशकों का धंधा? जनता सरकारी मेडिकल कॉलेज चाहती थी, लेकिन सरकार ने निजी मॉडल थमा दिया। यह फैसले से ज्यादा जनता की भावनाओं से खिलवाड़ है।
कटनी की जनता ने आवाज बुलंद कर दी है—हम चाहते थे सरकारी मेडिकल कॉलेज, न कि महंगे इलाज का पीपीपी मॉडल। सत्ता अगर इसे नहीं समझती, तो यह मेडिकल कॉलेज आने वाले समय में बीजेपी के लिए राजनीतिक बैसाखी नहीं, बल्कि जनता के गुस्से का प्रतीक साबित होगा।
मनोज सिंह परिहार ✍️ ✍️
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