साहब बताओ आखिरकार दैगवा महगवां में पंचायती राज क्यों नहीं,भ्रष्टाचार हावी क्यों - ग्रामीण
कटनी जंक्शन -- जिले की जनपद ढीमरखेड़ा के अंतर्गत ग्राम पंचायत दैगवा महगवां में पंचायती राज व्यवस्था अब "बेशर्मी राज व्यवस्था"बनती जा रही है। ग्राम पंचायत में भ्रष्टाचार इतना गहरा धंस चुका है कि अब उसे ढकने की भी कोशिश नहीं होती—सीधा और साफ लूटपाट का खेल चल रहा है,और जिला पंचायत से लेकर जनपद तक,सबकी आंखों पर भ्रष्टाचार की पट्टी बंधी है।सूत्रों की मानें तो ढीमरखेड़ा जनपद के अंतर्गत कई ग्राम पंचायतों में सरकारी योजनाएं नहीं, घोटालों की योजनाएं लागू की जा रही हैं। दैगवा महगवां पंचायत इसका जीता-जागता उदाहरण है—यहां सचिव आता है, सरपंच के साथ मिलकर खाता है,और अगर नहीं खाता तो हटाया जाता है! यानी निष्ठा नहीं, रिश्वत ही अब नौकरी की शर्त बन चुकी है।
सीईओ साहब: 'जनसेवा' नहीं, 'जनसेवा से दूरी' का प्रतीक बने हैं
ढीमरखेड़ा जनपद में तैनात सीईओ साहब का रवैया देखकर यही लगता है कि वो शायद 'भ्रष्टाचार संरक्षण योजना' के ब्रांड एम्बेसडर बन चुके हैं। उनके साथ ग्राम पंचायत के सरपंच सचिव भी कुछ कम नहीं हैं। लेकिन सीईओ साहब को न शिकायतों की सुनवाई करने और न निरीक्षण करने की फुर्सत नहीं जनता की समस्याएं सुलझाने का समय उनके एजेंडे में कहीं हैं ही नहीं। क्षेत्र में चर्चा है कि साहब जिले के बड़े अधिकारियों तक "पेटी सेवा" पहुंचाने का कार्य करते हैं यह सिलसिला इतना सुचारू है कि कोई भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि उन्हें टोकने की हिम्मत नहीं कर पाता। दैगवा महगवां में सरपंच सचिव होने के बाद भी सिर्फ और सिर्फ इनकी लूट पूरी तैनाती से जारी है।
पंचायत में सचिव कब आते हैं, कब चले जाते हैं—इसका हिसाब खुद पंचायत सचिवालय में नहीं मिलेगा। यहां सारा खेल सरपंच पति का और उनका सीधा निर्देश चलता है—"जो मेरे हिसाब से चले, वही सचिव रहेगा।" अब भला शासकीय नियमों को धत्ता बताकर पंचायत को पर्सनल प्रॉपर्टी की तरह चलाने की छूट किसने दी?
सरपंच पति और सचिव से जनप्रतिनिधि लाचार, जनता हताश, और भ्रष्टाचार का खेल बेखौफ !
जनता उम्मीद लगाए बैठी थी कि चुने हुए प्रतिनिधि भ्रष्टाचार की दीवार में सेंध लगाएंगे। लेकिन यहां तो नेता भी मानो इस गंदे खेल में साइलेंट स्पॉन्सर बन चुके हैं। अधिकारी बेलगाम, सरपंच पति बेफिक्र, और जनता बस त्रस्त!
क्या कटनी जिले में शासन-प्रशासन का मतलब अब केवल 'भुगतान लो, चुप रहो' तक रह गया है?
पंचायत सचिवों की अदला-बदली से लेकर योजनाओं की हेराफेरी तक, हर कोने में भ्रष्टाचार की बदबू फैली है, और प्रशासन उसे इत्र समझकर सूंघने मैं लगा है। यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग पंचायत भवनों को 'भ्रष्टाचार स्मारक' घोषित करने की मांग करने लगेंगे।
मनोज सिंह परिहार की रिपोर्ट
मोबाइल नंबर 8225008012
खबरों एवं विज्ञापन के लिए संपर्क करें